- 25 June, 2025
अस्ताना, जून 25, 2025: कज़ाख़स्तान की राजधानी में स्थित आवर मदर ऑफ परपिचुअल हेल्प चर्च में सताए गए ईसाइयों को समर्पित एक नया मरियम तीर्थस्थल उद्घाटित किया गया, जो मध्य एशिया में ऐसा पहला तीर्थस्थल है। सोवियत शासन के दौरान विशेष रूप से ईसाइयों पर हुए अत्याचारों की लंबी और पीड़ादायक विरासत वाले इस देश में यह नया तीर्थस्थल प्रार्थना और एकजुटता के लिए एक पवित्र स्थान प्रदान करता है। सहायक धर्माध्यक्ष एथनासियस श्नाइडर ने अपने प्रवचन सेंट जॉन पॉल द्वितीय के 2001 के अस्ताना दौरे के शब्दों को दोहराते हुए कहा , “जिन्होंने अपने विश्वास को छोड़ने से इनकार किया, उन्होंने अवर्णनीय परीक्षाओं का सामना किया”।
यह तीर्थस्थल Nasarean.org द्वारा शुरू की गई एक वैश्विक पहल का हिस्सा है, जो एक अमरीकी संगठन है और जिसने 2018 में दुनिया भर में सताए गए ईसाइयों का समर्थन करने के लिए यह परियोजना शुरू की थी। यह नवस्थापित तीर्थस्थल इस अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क का छठा केंद्र है — और मध्य एशिया में पहला — जो सताए गये लोगों की माता, मरियम की प्रतिमा के चारों ओर केंद्रित है। यह प्रतिमा लेबनानी मेल्काइट धर्मबहन सोराया हेरो द्वारा चित्रित की गई है और इस पर अरामाइक में “मदर ऑफ द परसिक्यूटेड” (सताए गए लोगों की माता) लिखा है, जो आज की पीड़ित कलीसिया को शुरुआती शहीदों और मसीह की भाषा से जोड़ती है।
इस नेटवर्क में प्रत्येक तीर्थस्थल किसी धर्माध्यक्ष द्वारा आशीर्वादित होता है और यह धार्मिक हिंसा, भेदभाव या निर्वासन के शिकार लोगों के लिए एक आध्यात्मिक शरणस्थली के रूप में कार्य करता है। अस्ताना स्थित इस तीर्थस्थल को आर्चबिशप थोमस्ज़ पेटा ने आशीर्वाद दिया और इसको धर्माध्यक्ष श्नाइडर का पूर्ण समर्थन प्राप्त है।
एक राष्ट्र जो धार्मिक पीड़ा से चिह्नित है
कज़ाख़स्तान, जो रूस और चीन की सीमा से लगा एक विशाल राष्ट्र है, इस पहल के लिए गहरे प्रतीकात्मक महत्व का स्थान रखता है। सोवियत काल के दौरान, यह कुख्यात गुलाग श्रम शिविरों का एक प्रमुख केंद्र था, जहाँ करोड़ों लोगों — जिनमें पुरोहित, धर्मबहनें और लोकधर्मी शामिल थे — सबको कैद किया गया। धार्मिक उपासना पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, चर्च बंद कर दिए गए थे, और संस्कारों को गुप्त रूप से सम्पन्न किया जाता था।
पूरे जातीय समुदायों, जिनमें जर्मन, पोल, यूक्रेनियन और बाल्टिक लोग शामिल थे — जिनमें से कई कैथोलिक या ऑर्थोडॉक्स थे — उनको 1930 के दशक में जबरन कज़ाख़स्तान में बसाया गया। धर्माध्यक्ष श्नाइडर का परिवार भी उन्हीं में से एक था। उनका जन्म 1961 में उराल क्षेत्र में निर्वासित जर्मन कैथोलिक माता-पिता के घर हुआ था, और वे भूमिगत कलीसिया में पले-बढ़े तथा छुपकर होने वाले धार्मिक समारोहों में भाग लेते थे। विश्वास के लिए उत्पीड़न सहने का यह व्यक्तिगत अनुभव आज भी उनके प्रेरितिक दृष्टिकोण और सेवा में झलकता है।
कड़े प्रतिबंधों के बीच आशा की किरण
1991 में स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद से कज़ाख़स्तान ने धार्मिक स्वतंत्रता को कानूनी रूप से मान्यता दी है। हालांकि, सरकार की ओर से कड़े नियंत्रण अब भी लागू हैं। देश में लगभग 70 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है, जबकि ईसाई — मुख्य रूप से रूसी ऑर्थोडॉक्स — कुल जनसंख्या का 26 प्रतिशत हैं। कैथोलिक समुदाय एक छोटा अल्पसंख्यक है, परंतु वे शैक्षिक, प्रेरितिक और परोपकारी प्रयासों के माध्यम से समाज में सक्रिय योगदान दे रहे हैं।
2022 में, पोप फ्रांसिस विश्व और पारंपरिक धर्मों के लीडरों की कांग्रेस के लिए कजाकिस्तान गये थे, और वहाँ उन्होंने अधिक अंतर-धार्मिक संवाद और धार्मिक स्वतंत्रता का आग्रह किया था। उनकी उपस्थिति ने इस क्षेत्र में कैथोलिक कलीसिया की निरंतर, हालांकि शांत, उपस्थिति को रेखांकित किया — एक संदेश जो अब सताए गए लोगों के इस नए तीर्थस्थल के माध्यम से दृश्य रूप में व्यक्त हो रहा है।
स्रोत: नेशनल कैथोलिक रजिस्टर
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